Public opinion on Bihar Caste Census : जाति जनगणना रिपोर्ट पर छिड़ी जंग; जानिए क्या कहती है जनता जनार्दन


जाति जनगणना पर जनता की राय
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार

बिहार में जाति आधारित जनगणना रिपोर्ट आने के बाद उसके प्रति अविश्वास और अंधविश्वास की एक बड़ी लड़ाई छिड़ गई है। जिन जातियों के लोगों की संख्या अच्छी और बढ़ी हुई बताई जा रही है, उन आंकड़ों पर कुछ लोगों को अंधविश्वास हो रहा है, जबकि जिनके आंकड़ों ने उनके जातिगत वजूद पर सवाल उठाया है, वह इसे न केवल फर्जी बता रहे हैं बल्कि पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल उठा रहे हैं। जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के कुछ ही घंटे के अंदर सोशल मीडिया पर यह दो तरह की बातें वायरल हो रही हैं। ऐसे में अमर उजाला ने कई लोगों से इस संबंध में बातें की जिसपर सभी ने अपनी अपनी राय दी।

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आँकड़े सही नहीं

समस्तीपुर जिला के जाने माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ सुमेंदु मुखर्जी का कहना है कि बिहार में जातिय जनगणना जरुरी नहीं था। इससे फायदा से ज्यादा नुकसान है। मेरे हिसाब से यह आंकड़ा सही नहीं है। जनगणना पर हुए खर्च को अगर विकास कार्य पर खर्च किया गया होता तो ज्यादा बेहतर होता।

जातीय जनगणना एक लॉलीपॉप के समान

जातीय जनगणना के संबंध में बेगूसराय जिले के सेवा निवृत प्रोफेसर डॉक्टर शालिग्राम सिंह का कहना है कि जातीय जनगणना एक लॉलीपॉप के समान है। गरीब वर्ग और सभी सामान्य वर्ग के लोगों को ठगने के लिए ऐसा किया गया है। बिहार में बेरोजगारी है, भुखमरी है, युवक सड़क पर घूम रहे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है। शिक्षा का स्तर गर्त में जा रहा है। जो समाज के सबसे निचले स्तर पर हैं, उनको ऊपर उठाने का काम नहीं किया जा रहा है। इसलिए मैं समझता हूं कि जाति जनगणना बस एक धोखा है। पहले बेरोजगारी, अशिक्षा और कुपोषण जैसे समस्याओं का समाधान हो जाए, इसके बाद इस पर विचार किया जाता तो बेहतर होता।

जिस जाति की संख्या कम उसको संरक्षण अधिक

सीतामढ़ी जिला के प्रबुद्ध नागरिक नीरज गोयनका का कहना है कि बिहार सरकार ने आज जातिगत जनगणना के आधिकारिक आंकड़ों की घोषणा कर दी। प्रथम दृष्टया में ये 82% हिंदुओं को बांटने की बड़ी साजिश दिखती है। अभी ठाकुर और ब्राह्मण विवाद को दी जा रही हवा को आप इस परिपेक्ष में देख सकते हैं। जहां तक इसकी विश्वसनीयता का सवाल है तो इस पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है। एक जाति के नेता का बयान भी आ गया कि उनकी जाति की संख्या को कम कर के दिखाया गया है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि लोहार/ बढ़ई जाति के लोगों ने तो अभियान चलाकर अपनी जाति गणना नहीं कराई बल्कि अन्य के स्तंभ में अपनी प्रविष्टि  कराई। इसी प्रकार अति पिछड़ी जाति के नेता पूर्व से ही तेली, तमोली, कानू, दांगी आदि जाति को इस संवर्ग में रखने को तैयार नहीं हैं। इस पर एक मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय में लंबित भी है। जहां तक प्रभाव का प्रश्न है तो ‘जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा बुलंद होगा और प्रदेश को उन्माद में झोंकने की कोशिश होगी। होना यह चाहिए कि जिस जाति की संख्या कम उसको संरक्षण अधिक मिलना चाहिए।

इसके फायदे उस दलगत हिस्से से तलाश कर रहे हैं

दरभंगा जिला के साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार मनोरंजन ठाकुर ने कहा कि आज बिहार सरकार की जाति आधारित जनगणना के आकंड़े पर अपना विचार रखते हुए कहा कि  बिहार में जाति आधारित गणना सिर्फ एक आंकड़ा है। विकास के सामुच्य लिए संभावनाओं को तलाशती दिख रही है। वही समाज के भीतर की मूल परत खोलती है अगर इसे, वर्ग, धर्म के साथ रोजगार, पेशा की एक विस्तृत, निर्विकार भाव में निस्वार्थ रिपोर्ट मानें तो पैमाना, आकार, जरूरत विस्तार लिए जरूर दिखेगा। लेकिन इसके फायदे उस दलगत हिस्से से तलाश कर रहे हैं जहां राजनीति, खासकर चुनावी गणित का समीकरण सीधा और स्पष्ट कोण में दिखता है।



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