Chhath Puja: दिल्ली में कितने हैं पूर्वांचली वोटर, MCD चुनाव में क्यों हैं महत्त्वपूर्ण?


Chhath Puja 2022
– फोटो : अमर उजाला

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छठ पूजा (Chhath Puja) महापर्व की शुरुआत शुक्रवार से ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हो चुकी है। दिल्ली की कुल आबादी में लगभग 40 फीसदी की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाले पूर्वांचली मतदाताओं को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने भी यमुना के घाटों पर डेरा जमा लिया है। यमुना के घाट पर छठ पूजा की अनुमति दिलाने और पूजा की पर्याप्त सुविधाएं देने के नाम पर भाजपा इन मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है, तो दिल्ली सरकार विशेष फंड जारी कर पूर्वांचलियों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। पूर्वांचली मतदाता दिल्ली एमसीडी चुनाव में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इस बार ये किसके साथ जा सकते हैं?
किस इलाके में ज्यादा हिस्सेदारी
दिल्ली की कुल आबादी में लगभग 40 फीसदी हिस्सेदारी पूर्वांचली समुदाय के लोगों की है। पूर्वी यूपी और बिहार से आने वाला यह समुदाय मूलतः दिल्ली के बाहरी इलाकों में बसा हुआ है। पूर्वी दिल्ली, लक्ष्मी नगर, गांधी नगर, आनंद विहार, सोनिया विहार, शास्त्री नगर, त्रिनगर, आनंद पर्वत, भजनपुरा, बुराड़ी, संतनगर, संगम विहार, ओखला, मदनपुर खादर और पंजाबी बस्ती इलाके में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है। कई इलाकों में ये अकेले दम पर लोकसभा, विधानसभा सीटों का परिणाम तय करने की हैसियत रखते हैं। नगर निगम चुनाव बेहद स्थानीय स्तर पर होने के कारण अलग-अलग पॉकेट्स में ये अकेले दम पर ही किसी दल की किस्मत तय कर सकते हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल पूर्वांचली मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता है।
कौन है दावेदार
रोजगार की तलाश में दिल्ली आने वाले गरीब मतदाताओं की पहली चिंता अपनी रोजी-रोटी की होती है। आसपास की एरिया में सस्ता आवास पाना इनकी प्राथमिकता होती है, लेकिन उनकी इस कोशिश ने राजधानी के बाहरी इलाकों में भारी संख्या में अवैध कच्ची कॉलोनियां बना दी हैं। इनमें बेसिक सुविधाओं का भी अभाव है। जो भी राजनीतिक दल उनकी इन सुविधाओं को उन्हें उपलब्ध कराने का दावा करता है, ये उसके साथ चले जाते हैं।
कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक रहा
शुरूआती दौर में यह वर्ग कांग्रेस का पारंपरिक और बेहद विश्वसनीय मतदाता हुआ करता था। दिल्ली में शीला दीक्षित का जादू चलने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह समुदाय ही था। शीला सरकार ने इन आप्रवासियों को नजदीकी क्षेत्रों में रहने के लिए जगह, इनकी कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएं, स्कूल और राशन जैसी सुविधाएं देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही कारण था कि 2012 तक यह वर्ग बड़ी संख्या में उसके साथ रहा। हालांकि, दमदार चेहरे और कमजोर स्थानीय नेतृत्व के कारण अब यह वर्ग काफी हद तक कांग्रेस से अलग हो चुका है।
क्या भाजपा के है साथ?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मूलरूप से यूपी-बिहार से आने वाला यह समुदाय राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं के प्रति भी बेहद संवेदनशील होता है। यही कारण है कि मंडल-कमंडल की राजनीति के साथ ही इसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ चला गया। दिल्ली में भाजपा की पहली सरकार बनाने में इस वर्ग ने अच्छी हिस्सेदारी निभाई थी। दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर भाजपा को लगातार दो बार बड़ी जीत दिलाने में इस वर्ग ने बड़ी भूमिका निभाई है, ऐसा माना जाता है। एमसीडी में भाजपा की 15 साल की सत्ता बरकरार रखने में भी इस वर्ग की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
केजरीवाल की दावेदारी
अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के साथ ही इस गरीब वर्ग की आकांक्षाओं को मुफ्त की योजनाओं से लुभाकर अपने साथ कर लिया। आम आदमी पार्टी की राजनीतिक यात्रा में मुसलमान और दलित मतदाताओं के साथ जिस वर्ग ने सबसे ज्यादा हिस्सेदारी निभाई, वह पूर्वांचली समुदाय ही था। यह समुदाय दिल्ली सरकार की मुफ्त बिजली, पानी, परिवहन और राशन व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभार्थी है। दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था में कुछ सुधार कर इस समुदाय के लोगों के मन में अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य की उम्मीद पैदा की है। इसका परिणाम हुआ है कि यह वर्ग अब केजरीवाल के साथ माना जाता है।
एमसीडी चुनाव में किसके साथ
अब तक इन मतदाताओं की प्राथमिकता अलग-अलग चुनाव में अलग-अलग रही है। पिछले 15 सालों में नगर निगम चुनाव में ये भाजपा का साथ देते रहे हैं, तो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साथ रहे हैं। लोकसभा चुनावों में इनकी प्राथमिकता भाजपा की रही है। लेकिन बदले दौर में इन मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग आम आदमी पार्टी के साथ रह सकता है, जिससे नगर निगम में भी बड़ा उलटफेर हो सकता है।
सबकी दावेदारी
दिल्ली भाजपा नेता अनुराग सिंह चंदेल ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली सरकार ने पूर्वांचली समुदाय के लोगों का अपमान किया है। यमुना के घाटों पर छठ मनाने की अनुमति न देकर केजरीवाल ने एक बार फिर हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं को चोट पहुंचाई है। जबकि भाजपा ने यमुना के छठ घाटों पर पूजा की अनुमति दिलाकर और पूजा की उचित व्यस्था कर इनकी भावनाओं का सम्मान किया है। उन्होंने दावा किया कि पिछले 15 साल की तरह इस बार भी पूर्वांचली समुदाय भाजपा के साथ ही रहेंगे और पार्टी निगम की सत्ता में वापसी करेगी।दिल्ली प्रदेश कांग्रेस नेता मुदित अग्रवाल ने कहा कि पूर्वांचली समुदाय ने भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों को अवसर देकर देख लिया है कि ये दल केवल राजनीति करते हैं, जबकि उनके बच्चों के लिए स्कूल बनवाने और उनके लिए आवास उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा काम कांग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित सरकार में किए गये थे। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस एक बार फिर इन मतदाताओं के बीच वापसी करेगी।

विस्तार

छठ पूजा (Chhath Puja) महापर्व की शुरुआत शुक्रवार से ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हो चुकी है। दिल्ली की कुल आबादी में लगभग 40 फीसदी की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाले पूर्वांचली मतदाताओं को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने भी यमुना के घाटों पर डेरा जमा लिया है। यमुना के घाट पर छठ पूजा की अनुमति दिलाने और पूजा की पर्याप्त सुविधाएं देने के नाम पर भाजपा इन मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है, तो दिल्ली सरकार विशेष फंड जारी कर पूर्वांचलियों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। पूर्वांचली मतदाता दिल्ली एमसीडी चुनाव में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और इस बार ये किसके साथ जा सकते हैं?

किस इलाके में ज्यादा हिस्सेदारी

दिल्ली की कुल आबादी में लगभग 40 फीसदी हिस्सेदारी पूर्वांचली समुदाय के लोगों की है। पूर्वी यूपी और बिहार से आने वाला यह समुदाय मूलतः दिल्ली के बाहरी इलाकों में बसा हुआ है। पूर्वी दिल्ली, लक्ष्मी नगर, गांधी नगर, आनंद विहार, सोनिया विहार, शास्त्री नगर, त्रिनगर, आनंद पर्वत, भजनपुरा, बुराड़ी, संतनगर, संगम विहार, ओखला, मदनपुर खादर और पंजाबी बस्ती इलाके में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है। कई इलाकों में ये अकेले दम पर लोकसभा, विधानसभा सीटों का परिणाम तय करने की हैसियत रखते हैं। नगर निगम चुनाव बेहद स्थानीय स्तर पर होने के कारण अलग-अलग पॉकेट्स में ये अकेले दम पर ही किसी दल की किस्मत तय कर सकते हैं। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल पूर्वांचली मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता है।

कौन है दावेदार

रोजगार की तलाश में दिल्ली आने वाले गरीब मतदाताओं की पहली चिंता अपनी रोजी-रोटी की होती है। आसपास की एरिया में सस्ता आवास पाना इनकी प्राथमिकता होती है, लेकिन उनकी इस कोशिश ने राजधानी के बाहरी इलाकों में भारी संख्या में अवैध कच्ची कॉलोनियां बना दी हैं। इनमें बेसिक सुविधाओं का भी अभाव है। जो भी राजनीतिक दल उनकी इन सुविधाओं को उन्हें उपलब्ध कराने का दावा करता है, ये उसके साथ चले जाते हैं।
कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक रहा

शुरूआती दौर में यह वर्ग कांग्रेस का पारंपरिक और बेहद विश्वसनीय मतदाता हुआ करता था। दिल्ली में शीला दीक्षित का जादू चलने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह समुदाय ही था। शीला सरकार ने इन आप्रवासियों को नजदीकी क्षेत्रों में रहने के लिए जगह, इनकी कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएं, स्कूल और राशन जैसी सुविधाएं देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यही कारण था कि 2012 तक यह वर्ग बड़ी संख्या में उसके साथ रहा। हालांकि, दमदार चेहरे और कमजोर स्थानीय नेतृत्व के कारण अब यह वर्ग काफी हद तक कांग्रेस से अलग हो चुका है।

क्या भाजपा के है साथ?
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मूलरूप से यूपी-बिहार से आने वाला यह समुदाय राष्ट्रीय और धार्मिक भावनाओं के प्रति भी बेहद संवेदनशील होता है। यही कारण है कि मंडल-कमंडल की राजनीति के साथ ही इसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ चला गया। दिल्ली में भाजपा की पहली सरकार बनाने में इस वर्ग ने अच्छी हिस्सेदारी निभाई थी। दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर भाजपा को लगातार दो बार बड़ी जीत दिलाने में इस वर्ग ने बड़ी भूमिका निभाई है, ऐसा माना जाता है। एमसीडी में भाजपा की 15 साल की सत्ता बरकरार रखने में भी इस वर्ग की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
केजरीवाल की दावेदारी
अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने के साथ ही इस गरीब वर्ग की आकांक्षाओं को मुफ्त की योजनाओं से लुभाकर अपने साथ कर लिया। आम आदमी पार्टी की राजनीतिक यात्रा में मुसलमान और दलित मतदाताओं के साथ जिस वर्ग ने सबसे ज्यादा हिस्सेदारी निभाई, वह पूर्वांचली समुदाय ही था। यह समुदाय दिल्ली सरकार की मुफ्त बिजली, पानी, परिवहन और राशन व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभार्थी है। दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था में कुछ सुधार कर इस समुदाय के लोगों के मन में अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य की उम्मीद पैदा की है। इसका परिणाम हुआ है कि यह वर्ग अब केजरीवाल के साथ माना जाता है।

एमसीडी चुनाव में किसके साथ
अब तक इन मतदाताओं की प्राथमिकता अलग-अलग चुनाव में अलग-अलग रही है। पिछले 15 सालों में नगर निगम चुनाव में ये भाजपा का साथ देते रहे हैं, तो विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के साथ रहे हैं। लोकसभा चुनावों में इनकी प्राथमिकता भाजपा की रही है। लेकिन बदले दौर में इन मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग आम आदमी पार्टी के साथ रह सकता है, जिससे नगर निगम में भी बड़ा उलटफेर हो सकता है।
सबकी दावेदारी
दिल्ली भाजपा नेता अनुराग सिंह चंदेल ने अमर उजाला से कहा कि दिल्ली सरकार ने पूर्वांचली समुदाय के लोगों का अपमान किया है। यमुना के घाटों पर छठ मनाने की अनुमति न देकर केजरीवाल ने एक बार फिर हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं को चोट पहुंचाई है। जबकि भाजपा ने यमुना के छठ घाटों पर पूजा की अनुमति दिलाकर और पूजा की उचित व्यस्था कर इनकी भावनाओं का सम्मान किया है। उन्होंने दावा किया कि पिछले 15 साल की तरह इस बार भी पूर्वांचली समुदाय भाजपा के साथ ही रहेंगे और पार्टी निगम की सत्ता में वापसी करेगी।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस नेता मुदित अग्रवाल ने कहा कि पूर्वांचली समुदाय ने भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों को अवसर देकर देख लिया है कि ये दल केवल राजनीति करते हैं, जबकि उनके बच्चों के लिए स्कूल बनवाने और उनके लिए आवास उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा काम कांग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित सरकार में किए गये थे। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस एक बार फिर इन मतदाताओं के बीच वापसी करेगी।



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