कमल किशोर की सफलता की कहानी: जिस विश्वविद्यालय में चपरासी के पद पर थे तैनात, अब वहीं बने सहायक प्रोफेसर


तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (सांकेतिक तस्वीर)।
– फोटो : सोशल मीडिया

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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती… सोहनलाल द्विवेदी की कविता की यह पंक्ति बिहार के भागलपुर जिले के कमल किशोर मंडल की कहानी पर सटीक बैठती है। कमल किशोर मंडल ने लगन और मेहनत के दम पर अपनी किस्मत खुद बदली है। भागलपुर के तिलकामांझी विश्वविद्यालय में अंबेडकर विचार विभाग में चपरासी का काम करने वाले कर्मचारी कमल किशोर मंडल का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुआ हैं। हालांकि इस पद पर अभी उनकी ज्वाइनिंग नहीं हुई है।
चपरासी से बने सहायक प्रोफेसर
भागलपुर शहर के मुंदीचक इलाके के रहने वाले 42 वर्षीय कमल किशोर मंडल को 23 साल की उम्र में 2003 में मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज में नाइट गार्ड के रूप में नौकरी मिली थी। उस वक्त तक उन्होंने राजनीति विज्ञान से स्नातक तक की पढ़ाई की थी। उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए गार्ड की नौकरी कर ली। इसके बाद किशोर मंडल की जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट आया, उन्हें ड्यूटी में शामिल होने के एक महीने बाद तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग (स्नातकोत्तर) में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया। 2008 में उनका पद बदलकर चपरासी कर दिया गया।अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में आने के बाद उनकी मुलाकात विभाग के छात्रों और शिक्षकों से हुई। छात्रों को देख उनके मन भी आगे पढ़ाई की जिज्ञासा बढ़ने लगी। फिर उन्होंने स्नातकोत्तर किया। इसके बाद 2013 में पीएचडी के लिए खुद को नामांकित किया और 2017 में थीसिस जमा की। उन्हें 2019 में पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया। इस बीच उन्होंने व्याख्यान के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी पास की और वैकेंसी की तलाश जारी रखी।2020 में बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) ने टीएमबीयू में संबंधित विभाग में सहायक प्रोफेसर के चार पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन निकला। 12 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था, जिसमें कमल किशोर भी शामिल थे। उनके चयन का परिणाम 19 मई, 2022 को घोषित किया गया था। हालांकि सहायक प्रोफेसर पद पर अभी उनकी ज्वाइनिंग नहीं हुई है, कुछ तकनीकी कारणों से जांच चल रही है।पढ़ाई के रास्ते में गरीबी को नहीं आने दिया: कमल किशोरअपनी सफलता के बारे में बताते हुए कमल किशोर मंडल ने कहा कि “2009 में पीएचडी करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन विभाग ने तीन साल बाद 2012 में सहमति दी। मैंने कभी भी अपनी पढ़ाई के रास्ते में गरीबी और पारिवारिक समस्याओं को नहीं आने दिया। मैंने सुबह कक्षाओं में भाग लिया और दोपहर में ड्यूटी की। इसके साथ ही रात के समय में क्लास में किए गए अध्ययन को दोहराता था। उन्होंने कहा कि “मेरे साथ चार लोगों का चयन हुआ था, लेकिन मेरी नियुक्ति को रोक दिया गया है और तीन अन्य लोगों की ज्वाइनिंग हो गई है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मुझे किस वजह से रोका गया। फिर मैने सेक्शन ‘ए’ से पता किया कि तो पता चला कि अभी मुझे हटाया नहीं गया है, कमिटी बैठी है, जांच चल रही हैं, उसके बाद इस पर निर्णय लिया जाएगा। यह आश्वासन मिला कि हो जाएगा आप इंतजार किजीए, तब से मैं वेट एंड वॉच की स्थिति में हूं।”

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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती… सोहनलाल द्विवेदी की कविता की यह पंक्ति बिहार के भागलपुर जिले के कमल किशोर मंडल की कहानी पर सटीक बैठती है। कमल किशोर मंडल ने लगन और मेहनत के दम पर अपनी किस्मत खुद बदली है। भागलपुर के तिलकामांझी विश्वविद्यालय में अंबेडकर विचार विभाग में चपरासी का काम करने वाले कर्मचारी कमल किशोर मंडल का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर हुआ हैं। हालांकि इस पद पर अभी उनकी ज्वाइनिंग नहीं हुई है।
चपरासी से बने सहायक प्रोफेसर

भागलपुर शहर के मुंदीचक इलाके के रहने वाले 42 वर्षीय कमल किशोर मंडल को 23 साल की उम्र में 2003 में मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज में नाइट गार्ड के रूप में नौकरी मिली थी। उस वक्त तक उन्होंने राजनीति विज्ञान से स्नातक तक की पढ़ाई की थी। उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए गार्ड की नौकरी कर ली। इसके बाद किशोर मंडल की जिंदगी में टर्निंग प्वाइंट आया, उन्हें ड्यूटी में शामिल होने के एक महीने बाद तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग (स्नातकोत्तर) में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया। 2008 में उनका पद बदलकर चपरासी कर दिया गया।

अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में आने के बाद उनकी मुलाकात विभाग के छात्रों और शिक्षकों से हुई। छात्रों को देख उनके मन भी आगे पढ़ाई की जिज्ञासा बढ़ने लगी। फिर उन्होंने स्नातकोत्तर किया। इसके बाद 2013 में पीएचडी के लिए खुद को नामांकित किया और 2017 में थीसिस जमा की। उन्हें 2019 में पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया। इस बीच उन्होंने व्याख्यान के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी पास की और वैकेंसी की तलाश जारी रखी।
2020 में बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) ने टीएमबीयू में संबंधित विभाग में सहायक प्रोफेसर के चार पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन निकला। 12 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था, जिसमें कमल किशोर भी शामिल थे। उनके चयन का परिणाम 19 मई, 2022 को घोषित किया गया था। हालांकि सहायक प्रोफेसर पद पर अभी उनकी ज्वाइनिंग नहीं हुई है, कुछ तकनीकी कारणों से जांच चल रही है।
पढ़ाई के रास्ते में गरीबी को नहीं आने दिया: कमल किशोर

अपनी सफलता के बारे में बताते हुए कमल किशोर मंडल ने कहा कि “2009 में पीएचडी करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन विभाग ने तीन साल बाद 2012 में सहमति दी। मैंने कभी भी अपनी पढ़ाई के रास्ते में गरीबी और पारिवारिक समस्याओं को नहीं आने दिया। मैंने सुबह कक्षाओं में भाग लिया और दोपहर में ड्यूटी की। इसके साथ ही रात के समय में क्लास में किए गए अध्ययन को दोहराता था। उन्होंने कहा कि “मेरे साथ चार लोगों का चयन हुआ था, लेकिन मेरी नियुक्ति को रोक दिया गया है और तीन अन्य लोगों की ज्वाइनिंग हो गई है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मुझे किस वजह से रोका गया। फिर मैने सेक्शन ‘ए’ से पता किया कि तो पता चला कि अभी मुझे हटाया नहीं गया है, कमिटी बैठी है, जांच चल रही हैं, उसके बाद इस पर निर्णय लिया जाएगा। यह आश्वासन मिला कि हो जाएगा आप इंतजार किजीए, तब से मैं वेट एंड वॉच की स्थिति में हूं।”



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