<p style="text-align: justify;">जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग के कोकेरनाग में सर्च ऑपरेशन करने पहुंचे सुरक्षाबलों पर आतंकियों ने हमला कर दिया. आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना और पुलिस के 3 बड़े अधिकारी शहीद हो गए हैं. घाटी में पिछले 3 साल में आतंकी वारदात की यह सबसे बड़ी घटना बताई जा रही है.</p>
<p style="text-align: justify;">जवानों पर हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी संगठन द रेजिडेंट फ्रंट ने ली है. पहले भी घाटी में बड़े अधिकारियों की हत्या की जिम्मेदारी लेने की वजह से टीआरएफ सुर्खियों में रह चुका है. इसी साल भारत सरकार ने यूएपीए के तहत इस संगठन पर बैन लगाया था.</p>
<p style="text-align: justify;">लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिद्दीन ने 2019 में इसका गठन किया था. इसमें अधिकांश स्थानीय लोगों को भर्ती किया जाता है. इस संगठन को पाकिस्तान के खुफिया एजेंसी आईएसआई से ऑपरेशन ‘रेड वेव’ की जिम्मेदारी मिली है.</p>
<p style="text-align: justify;">इससे पहले टीआरएफ तब सुर्खियों में आया था, जब इस आतंकी संगठन ने अक्टूबर 2022 में जम्मू-कश्मीर के रेल डीजी एचके लोहिया की हत्या कर दी थी. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आईएसआई का ऑपरेशन रेड वेव क्या है?</strong><br />जून 2022 में सबसे पहले घाटी में ऑपरेशन रेड वेव की गूंज सुनाई दी. बीजेपी नेता रवींद्र रैना ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान के इशारे पर आतंकी ऑपरेशन रेड वेव चला रहे हैं. ऑपरेशन रेड वेव के जरिए 200 लोगों को मारने का प्लान है. </p>
<p style="text-align: justify;">बीजेपी का कहना था कि ऑपरेशन टुपैक की तर्ज पर आतंकी ऑपरेशन रेड वेव चलाना चाह रहे हैं. बाद में भारत के खुफिया एजेंसी को भी आईएसआई के मीटिंग का कुछ इनपुट मिला. इसके अनुसार सितंबर 2021 में पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद में एक मीटिंग आयोजित की गई थी. </p>
<p style="text-align: justify;">इसमें आईएसआई के अधिकारियों ने आतंकियों से घाटी में टारगेट किलिंग करने के लिए कहा था. टारगेट किलिंग के लिए करीब 200 लोगों की एक लिस्ट भी सौंपी गई थी, जिसमें सेना और पुलिस के बड़े अधिकारी, स्थानीय राजनेता और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के नाम शामलि थे.</p>
<p style="text-align: justify;">एक्सपर्ट के मुताबिक 1988-90 में आईएसआई ने इंडियन मुजाहिद्दीन समेत 6 आतंकी संगठनों के साथ मिलकर कश्मीर में ऑपरेशन टुपैक चलाया था. नापाक इशारों पर शुरू किए गए इस ऑपरेशन में 300 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद कश्मीर से बड़ी संख्या में पंडितों का पलायन हुआ था. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कश्मीर में द रेजिडेंट फ्रंट कितना मजबूत?</strong><br />गृह मंत्रालय के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए पाकिस्तान ने 4 प्रॉक्सी संगठन का सहारा लिया है. इसमें द रेजिडेंट फ्रंट भी शामिल है. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि यह संगठन टारगेट किलिंग के लिए कुख्यात है.</p>
<p style="text-align: justify;">कश्मीर के स्थानीय पत्रकार वाहिद भट्ट एबीपी को बताते हैं- टारगेट किलिंग के लिए कुख्यात टीआरएफ में अधिकांश युवा और लोकल लोगों को भर्ती किया जाता है. ट्रेनिंग के बाद यह घाटी के अलग-अलग इलाकों में एक्टिव हो जाते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">भट्ट के मुताबिक लोकल होने की वजह से इनके पास बहुत सारी जानकारियां रहती है, इसलिए यह संगठन टारगेट किलिंग की वारदात को आसानी से अंजाम दे देते हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">भट्ट आगे कहते हैं- पिछले 2 साल में पुलिस और सुरक्षाबलों की संयुक्त कार्रवाई में इनके कई कमांडर मारे जा चुके हैं, जिसके बाद इस संगठन के उल्टी गिनती की बात भी कही जा रही थी, लेकिन इस घटना ने फिर से चिंता बढ़ा दी है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>घाटी में कैसे काम करता है टीआरएफ?</strong><br />ग्लोबल थिंकटैंक ओआरएफ ने टीआरएफ को लेकर 2021 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके मुताबिक अगस्त 2019 में सीमा पार आतंकी संगठन हिजाबुल मुजाहिद्दीन और लश्कर-ए-तैयबा ने ओवर ग्राउंड वर्कर्स के सहारे टीआरएफ का गठन किया था. इसका टैगलाइन रखा गया था- विजय तक प्रतिरोध. </p>
<p style="text-align: justify;">रिपोर्ट के मुताबिक पहली बार पाकिस्तान पोषित किसी आतंकी संगठन का नाम अंग्रेजी में रखा गया था. इसके पीछे आईएसआई की रणनीति पाकिस्तान को एफएटीएफ से सुरक्षा प्रदान कराना था. शुरुआत में इस संगठन में उन्हीं लोगों को तवज्जो दी गई, जिनका नाम पुलिस के रिकॉर्ड में नहीं था. </p>
<p style="text-align: justify;">टीआरएफ अदृश्य रहकर वारदात को अंजाम देता है. इस संगठन का कोई भी मुख्य सरगना नहीं है. हालांकि, जोन वाइज इसके कमांडर जरूर नियुक्त किया गया है. संगठन में शामिल आतंकी पाकिस्तान से मिले लिस्ट के हिसाब से अपने वारदात को अंजाम देते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">संगठन की फंडिंग पहले पाकिस्तान से सीधे होती थी, लेकिन 2022 में इसाक स्वरूप भी बदल गया. ग्रेटर कश्मीर अखबार ने एनआईए के सूत्रों के हवाले से एक हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.</p>
<p style="text-align: justify;">रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमा पर चौकसी बढ़ने के बाद पाकिस्तान में रह रहे स्थानीय आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में अपना पैतृक संपत्ति बेचना शुरू कर दिया है. संपत्ति बेचने के बाद जो पैसे मिलते हैं, उसे लोकल आतंकियों को दे दिया जाता है, जिससे अभियान की गति पर असर न हो. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बड़े अफसरों और अल्पसंख्यक ही निशाने पर क्यों?</strong><br />स्थानीय पत्रकार वाहिद भट्ट इसके पीछे 2 मुख्य वजह मानते हैं. 1. पहचान का संकट और 2. कश्मीर में अशांति बनाए रखना. </p>
<p style="text-align: justify;">भट्ट के मुताबिक टीआरएफ शुरू से ही अपने पहचान पर विशेष फोकस कर रहा है. बड़े अधिकारी और अल्पसंख्यक को निशाना बनाने के बाद तुरंत ही इसका क्रेडिट भी ले लेता है, जिससे देश-विदेश की मीडिया में सुर्खियों में आ जाता है. </p>
<p style="text-align: justify;">जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान इस संगठन के जरिए यह भी बताना चाहता है कि कश्मीर की यह अंदरुनी लड़ाई है. उसकी कोशिश अफगानिस्तान जैसे हालात पैदा करने की है.</p>
<p style="text-align: justify;">दूसरी बड़ी वजह कश्मीर में अशांति बनाए रखने की है. घाटी में अल्पसंख्यकों की आबादी बहुत ही कम है. द रेजिडेंट फ्रंट में शामिल आतंकियों को बाहरी के नाम पर ही ब्रेनवाश किया गया है.</p>
<p style="text-align: justify;">टीआरएफ ने 2019 में सबसे पहला बयान कश्मीर से बाहर के लोगों को लेकर ही जारी किया था. फ्रंट ने इसमें कहा था कि बाहर के जो लोग भी कश्मीर में बसने आएंगे, उसे हम आरएसएस का एजेंट मानेंगे और उनके साथ बुरा सलूक किया जाएगा. </p>
<p style="text-align: justify;">वाहिद भट्ट के मुताबिक अफसरों और अल्पसंख्यकों की हत्या कर माहौल टीआरएफ बाहर के लोगों में भय का माहौल बनाए रखना चाहती है, जिससे कश्मीर में लोग न आएं.</p>
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